हम जब भी इस सृष्टि के के बारे
में सोचते हैं तो , हमारे जहन में कई
तरह के प्रश्न उभर कर आते हैं , लेकिन हमें उनका समाधान
तार्किक दृष्टिकोण से नहीं मिलता . उनका समाधान पाने के लिए हमें सांसारिक मोह
माया से उपर उठकर विचार करना होता है .और यह विचार बुद्धि से न होकर मन को साधते
हुए आत्मा को परमात्मा में लीन करते हुए करना होता है . लेकिन इंसान पर माया का प्रभाव
इतना होता है कि वह अपने जीवन में बहुत कम आत्मिक स्तर पर सोचता है . जब वह आत्मिक
स्तर पर सोचना शुरू करता है तो उसके जीवन में आलौकिक आनंद का अहसास होता है .
जैसे- जैसे हम अपने आपको इस संसार से उपर उठाते हैं तो हमें परमानन्द की अनुभूति
होती है . और इस परमानन्द की अनुभूति को फिर जन जन तक पहुँचाने के लिए हमारे ऋषि ,
संत काव्य का सहारा लेते आये हैं .
वेदों से लेकर आज तक किसी न
किसी रूप में हमें यह अभिव्यक्ति देखने पढने और सुनने को मिली है . 'अवतार वाणी' भी बाबा "अवतार सिंह जी " द्वारा इस परमात्मा को अनुभूत करने के बाद रची गयी है इसके पहले पद्य में
ही जिस शब्द का प्रयोग हुआ है वह इसकी सार्थकता और ईश्वर के होने का बोध करवाता है
:-
अवतार
वाणी का प्रारंभ कुछ इस तरह से होता है
इक तूं
ही निरंकार
इस
पंक्ति को अगर हम देखें तो यह बहुत गहरे अर्थ हमारे सामने लाती है ,
बेशर्त है कि हमें इस अर्थ को समझने के लिए भावनात्मक रूप से ईश्वर
के साथ जुड़ना होता है अब हम इस पंक्ति को देखते है यहाँ जो शब्द आये है :-
इक = पूरी सृष्टि में एक ही परमात्मा है .
तूं = तूं शब्द का
प्रयोग हम तब करते हैं जब कोई हमारे सामने होता है , और वह हमें बहुत प्रिय होता है इसी तरह का शब्द गुरुवाणी
में भी प्रयोग किया गया है
मैं मछली तूं दरियावा , तूं मेंरा दाना बीना, यहाँ पर
किया गया "तूं "शब्द का प्रयोग भी इस ईश्वर के पास होने का अहसास करवाता
है .
निरंकार =
"निरंकार" शब्द का होना हमें परमात्मा के उस सवरूप का बोध
करवाता है जो उसके सृष्टि के कण कण में व्याप्त होने कि प्रमाणिकता को सिद्ध करता
है . क्योँकि यह सच है कि जब किसी वास्तु का आकार होता है तो उसकी सीमा तय हो जाती
है . और अगर परमात्मा का कोई आकर होता तो उसकी भी एक सीमा होती और ऐसी सीमा
परमात्मा को कभी भी सर्वव्यापक होने का प्रमाण नहीं देती . गुरु वाणी का प्रारंभ
भी "ओंकार" शब्द से होता है . इक ओंकार सतनाम = अर्थात एक निरंकार है
जिसका नाम सत्य है ओंकार शब्द से ही निरंकार शब्द की उत्पति हुई है .समग्रतः कहा
जा सकता है कि परमात्मा निराकार है .
जारी
.....!
22 आपकी टिप्पणियाँ:
bhai kewal ram ji bhut hi sundr post badhai aur shubhkamnayen |
bhai kewal ram ji bhut hi sundr post badhai aur shubhkamnayen |
sundar post ke liye
aabhar
अति सुंदर परमार्थ चिंतन.केवल राम जी आप धन्य है जो भीड़ में अकेले रह कर आधी रात के बाद भी परमात्मा के चिंतन में निमग्न हो ऐसा सुंदर लेख हम सब के हित के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं .आपका यह कहना सही है कि 'और यह विचार बुद्धि से न होकर मन को साधते हुए आत्मा को परमात्मा में लीन करते हुए करना होता है '
नही भटकता है वो, ज्ञान-धर्म पथ पर चलता है
ओंकार रहे सदा संग में,नहीं कोई फ़िर छलता है
सुन्दर विश्लेषण
बहुत ही सुन्दर पोस्ट.धन्यवाद केवल राम जी.
"इक तूं ही निरंकार" की बहुत सुन्दर व्याख्या की है आपने.खासकर 'तूं 'शब्द के बारे में तो बहुत ही अद्भुत लिखा है.
सलाम.
यह सच है कि जब किसी वास्तु का आकार होता है तो उसकी सीमा तय हो जाती है . और अगर परमात्मा का कोई आकर होता तो उसकी भी एक सीमा होती और ऐसी सीमा परमात्मा को कभी भी सर्वव्यापक होने का प्रमाण नहीं देती ....
ये परम सत्य है...ईश्वर अनादि, अनंत है..
समग्रतः कहा जा सकता है कि परमात्मा निराकार है...आत्मा को परमात्मा में लीन करते हुए सांसारिक मोह माया से उपर उठकर विचार करना ये तो आपके ही बस की बात है, और इस इस परमानन्द की अनुभूति को हम तक पहुँचाने के लिए आपका बहुत - बहुत आभार..
इक तूं ही निरंकार इसकी तो आपने बहुत ही अच्छी तरह से व्याख्या की है....
सुंदर पोस्ट....
ईश्वर निर्गुण ,निराकार है परन्तु भक्तों की श्रदा के अनुसार वह उनके लिए सगुन साकार भी हो सकता है .
जैसे जल भाप रूप में निराकार है लेकिन उसे ठंडा करके जिस सांचे में जमाया जाये तो बर्फ बन कर वह वैसा ही ठोस आकर ले लेती है .इसी प्रकार भक्तो का ह्रदय सांचा है और उनकी अटूट श्रद्धा,विश्वास व भक्ति ठंडा करने की प्रक्रिया.सूर की गोपियाँ तो उधोजी से यहाँ तक कह देती हैं "निर्गुण कोन देश को वासी....... "
Geeta adhayay12(Bhakti Yog) me bhi bhagwan ke dono rupo ko mana gaya hai yani nirgun-nirakar bhi aur sagun-saakaar bhi.
धन्य हे आप
आदरणीय राकेश जी
मैं आपकी बात से सहमत हूँ , चूँकि मैंने 'अवतार वाणी' की व्याख्या के आधार को स्पष्ट करने के लिए निरंकार शब्द की महता और व्याख्या को तरजीह दी है , अन्यथा ईश्वर "साकार और निरंकार " इस विषय पर भी मेरा आलेख यहाँ पर आएगा उसमें सब बातों को तथ्यपूर्ण ढंग से स्पष्ट करने का प्यास किया जायेगा . "ईश्वर की सर्व व्यापकता" वाले आलेख का दूसरा भाग अभी आना बाकी है ..आप अपना मार्गदर्शन यूँ ही बनाये रखें ....यही कामना है ...आपका आभार
आदरणीय केवल राम जी,
नमस्कार
खुशियों का है संसार,सतगुरु सांवरिया.......
"इक तूं ही निरंकार" की बहुत सुन्दर मतलब बताया आपने
निरंकारी संत समागम आगरा में हो रहा है!
इक तूं ही निरंकार.. की सुन्दर , सारगर्भित परिभाषा !
एक निरंकार है जिसका नाम सत्य है ओंकार शब्द से ही निरंकार शब्द की उत्पति हुई है . ....
दर्शन से परिपूर्ण बहुत गहन और सुन्दर व्याख्या....बधाई ।
सुन्दर व्याख्या। बधाई।
मेरे लिए यह काफी उपयोगी जानकारी। आभार और
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
परम सत्य ईश्वर अनंत है
आदरणीय केवल राम जी,
नमस्कार
धर्म दर्शन से परिपूर्ण
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ.
आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
मेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html
bhut achi explain kiya hai
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