22 दिसंबर 2010

ईश्वर की सर्व व्यापकता .....1.1.



बचपन में मैंने पढ़ा था , कि ईश्वर सर्वव्यापक है , सर्व शक्तिमान है । बहुत बार विश्लेषण किया कि
अगर ईश्वर का स्वरूप ऐसा है तो फिर यह नजर क्योँ नहीं आता
, महसूस क्योँ नहीं होता , ईश्वर दिखाई क्योँ नहीं देता ....बहुत बार ऐसे प्रश्न मेरे जहन में उठते ...और में इनके समाधान की कोशिश करता ....परन्तु जब पता चला तो खुद पर हंसी आ गयी ...जिस ईश्वर को वेद "नेति - नेति" कहता है...मेरे लिए उसका पार पाना कितना सरल और कितना कठिन हो सकता है । अंदाजा लगाया जा सकता है । पर एक बात अब स्पष्ट रूप से कह सकता हूँ कि ईश्वर सर्वव्यापक है ..और इसे महसूस किया जा सकता है ..जाना जा सकता है :..वेद में ईश्वर कि सर्व व्यापकता के विषय में कहा गया है :-
   अखंड मंडलाकार व्यापतेन चराचरं..
अर्थात ईश्वर अखंड है ...पूरे ब्रह्मंड में समाया है और सारी सृष्टि इसमें समायी है । तो जाहिर सी बात है कि ईश्वर पूरी कायनात में समाया है ..श्रीमदभगवतगीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को ईश्वर कि सर्व व्यापकता समझाते हैं तो अर्जुन ईश्वर के विराट स्वरूप को देख कर कहते हैं :-
                               त्वमादिदेव : पुरुष: पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम ।
                              वेतासि वेद्यं च परम च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप । ।
अर्थात आप आदि देव , सनातन पुरुष तथा इस द्र्श्यमान जगत के परम आश्रय हैं । आप सब कुछ जानने वाले हैं और आप ही वह सब कुछ हैं जो जानने योग्य है । आप भौतिक गुणों से परे परम आश्रय हैं । हे अनंत रूप ! यह सम्पूर्ण द्रश्यमान जगत आपसे व्याप्त है ।
अर्जुन की भगवान श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप को देख कर कही गयी इन बातों से स्पष्ट है कि ईश्वर सर्वव्यापक है । तथा इसे जान जा सकता है ...देखा जा सकता है । परन्तु भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को विराट स्वरूप दिखाने के पश्चात कहते हैं :-
   सुदुर्दशमिदं रूपं द्रष्ट वानसि यन्मम ।
              दवा अप्यस्य रूपस्य नित्यम दर्शनकाड.क्षिण:
हे अर्जुन ! तुम मेरे जिस रूप को इस समय देख रहे हो उसे देख पाना अत्यंत दुष्कर । आदि तक कि देवता भी इस अत्यंत प्रिय रूप को देखने कि ताक में रहते हैं ।
श्री कृष्ण के द्वारा अर्जुन को दिया गया यह ज्ञान ईश्वर के स्वरूप को हमारे सामने लाने में सहायक है ...सबसे पहले तो इस बात पर विचार करना होगा की इश्वर का स्वरूप कैसा है साकार यह निराकार ....और ईश्वर के किस स्वरूप के लिए देवता भी तरसते हैं . अगर ईश्वर स्रष्टि के कण कण में विद्यमान है तो निश्चित है की इसकी सत्ता निराकार है ...गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि :-
                                                                हरि व्याप्त सर्वत्र समाना
....हरि यानि ईश्वर, पुरे ब्रह्माण्ड में समाया है और सभी जगह एक जैसा ही है सामान रूप से विद्यमान है । कबीरदास जी भी कहते हैं कि :-
  पारब्रह्म के तेज का कैसा है उनमान
     कहते को शोभा नहीं देख्या ही परवान
यानि ईश्वर कि सत्ता इस सृष्टि के कण कण में है , और उसे जाना जा सकता है . गुरुवाणी में स्पस्ट उल्लेख है कि :-
                                आदि सचु , जुगादि सचु , है भी सचु , नानक होसी भी सचु
और आगे बताया गया है कि :-
        जमी जमां के बखि समस्त एक जोत है .
              न बाध है , न घाट है , न बाध घात होत है ।
जारी ............!

17 आपकी टिप्पणियाँ:

Ankur Jain ने कहा…

log kahte hain ki ishvar najar nahi aat...lekin sach to ye hai ki sirf vahi najar aata hai jab kuchh samajh nahi aata...sundar prastuti!!!

केवल राम ने कहा…

आदरणीय अंकुर जैन जी
आपका बहुत बहुत आभार ....

mukta mandla ने कहा…

पारब्रह्म के तेज का कैसा है उनमान
कहते को शोभा नहीं देख्या ही परवान
कबीर साहब ने यह बात ईश्वर के विषय
में नहीं कही भाई । और आपके लेख से भी
स्पष्ट नहीं कि आप कहना क्या चाहते हैं ?

केवल राम ने कहा…

आदरणीय राजीव जी
हो सकता है आपको ऐसा लगा हो , परन्तु आप दोहा पढ़ के देख लें क्या भाव निकलता है ..जहाँ तक लेख की बात रही यह इसका एक पार्ट है दुसरे में स्पष्ट हो जायेगा ...आपने टिप्पणी की आपका बहुत शुक्रगुजार हूँ ...ऐसे ही मार्गदर्शन की अपेक्षा है ...शुक्रिया

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

इतनी सुंदर पोस्ट ब्लाग जगत को देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया मेरे प्यारे भाई !

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एस एम् मासूम ने कहा…

केवल जी इतना उम्दा ब्लॉग कहां छिपा के रखा था? धन्यवाद् आपका

खबरों की दुनियाँ ने कहा…

अच्छी पोस्ट , नववर्ष की शुभकामनाएं । "खबरों की दुनियाँ"--------

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर संदेश दिया जी आप ने धन्यवाद

ManPreet Kaur ने कहा…

bahut hi umda post ..
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संध्या शर्मा ने कहा…

इतनी सुंदर पोस्ट ब्लाग जगत को देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया.......

केवल राम ने कहा…

@>>> डॉ अनवर जमाल जी
@>>> एस.एम.मासूम जी
@>>>खबरों की दुनियाँ
@>>>राज भाटिय़ा जी
@>>> sandhya जी
आप सबका शुक्र गुजार हूँ ..जो आपने मेरे इस प्रयास को सराहा ...आप अपना मार्गदर्शन यूँ ही बनाये रखना ...ताकि यह प्रयास सफल हो पाए ...धन्यवाद

विशाल ने कहा…

केवल जी , आज आपका यह ब्लॉग देखा .सच पूछें तो मन खुश हो गया .
ईश्वर की व्याख्या जो आपने की है इसे अभी और आगे लेजाने की जरूरत है.कम से कम मेरी ज्ञान पिपासा तो शांत नहीं हुई है.आप ने इतना कम क्यों लिखा है? कम टिप्पणियों की परवाह मत करें . असली ज्ञान पथ तो यही है.उम्मीद है आप अगली पोस्ट जल्दी करेंगे.मैं तो आपके इस प्रयास में साथ हूँ .ढेरों शुभकामनायें.
P.S. "अन्धकार से प्रकाश की और" मेरी प्रिय पुस्तकों में से एक है.

Kewal Ram ने कहा…

आपकी व्याख्या बहुत अच्छी है ..इसे और आगे ले जाने की जरुरत है ..धन्यवाद

Rakesh Kumar ने कहा…

Iswar ke baare me aapka chintan aur
jiggyasa jankar ati prasannta mili.Blog jagat me dheere dheere pravesh kar aap jaise nirmal santo
se milan hoga,yeh mere liye sukhad aashcharaya ki baat hai.Kuch abhi samai kum mil paa raha hai.Lekin phir bhi samai samai per vicharo ka aadaan pradaan to hota hi rahega
aisi aasha hai.Aapki sunder prastuti ke liye bahut bahut aabhaar.

shikha varshney ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत पोस्ट ,गहन बातें ..आत्मसात करनी चाहिए.

मुसाफिर क्या बेईमान ने कहा…

आज होली का पर्व है. ये त्यौहार क्या सिखाते है, बहुत कम इस पर सोचा जाता है. होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस, ये कुछ ऐसे नाम है जब गले मिलन होता है सब कुछ भूल कर. यही सत्य है. मानवता को मानव भूल न जाये, इसलिए त्यौहार आता है और हमें बदल कर चला जाता है. प्रकृति का नियम देखिये जापान को दोबारा इतिहास याद करवाया और पूरे विश्व को बताया की परमाणु भी मेरा ही अंश है. इसे समझ लेंगे तो हमेशा याद रहेगा की मानव तुम और तुमारी शक्तियां सीमित है. इस विश्व की रचना और उसका संचालन कहीं और है. इतना याद रहेगा तो अपना घमन्ड, अपना गरूर, अपना ही अपना भूल कर सभी मानव बनेगें. यही ईश्वरीय सत्य है. -----आपका मुसाफिर क्या बेईमान

Unknown ने कहा…

हरि ॐ ततसत।
राम राम जी।
कई वर्षोँ से एक प्रश्न मस्तिष्क में है। कई बुद्धिजीवियों ओर अध्यात्म तत्व के ज्ञाताओं को पूछा लेकिन सन्तोषप्रद उतर नही मिला।
फिर भी मेरा पूछने का सिलसिला जारी है,शायद कभी कोई संतोषजनक उतर कहि से मिल जाये।
प्रश्न पर आने से पहले आइये ईश्वर के बारे में आधारभूत या सर्वमान्य राय पर चर्चा करें।
हम सभी इस बात से सहमत है कि ईश्वर सर्वशक्तिमान है। ईश्वर ब्रह्मांड के कण कण में व्याप्त है। और सबसे मुख्य बात,,,कृपया गौर करे,,,,,ईश्वर निर्लिप्त है,,अर्थात ईश्वर को किसी से प्रेम नही है ओर किसी से द्वैष नही हैं,, उसे कोई प्रिय नही है,कोई अप्रिय भी नही है,,,ईश्वर स्वयं की कोई इच्छा या कामना नही है,,,,ईश्वर इच्छा, भय, लालच से रहित हैं। ईश्वर अजन्मा,सनातन है।
वेदों में बताया गया है कि ईश्वर के मन में इच्छा हुई कि मैं एक से अनेक हो जाऊं। मेरा मानना है कि सभी सांसारिक दुखो ओर समस्याओ की जड़ यही से शुरू हुई। प्रश्न भी यहि से शुरू होता है कि जब ईश्वर किसी इच्छा से रहित है तो एक से अनेक होने की क्या जरूरत थी। क्या ईश्वर को अकेले भय लग रहा था? अगर भय लग रहा था तो ईश्वर भय रहित कैसे हुआ?

मनुष्य को बनाने से पहले क्या ईश्वर खुश नही था?
आखिर ईश्वर ने मनुष्य को बनाया ही क्यों? ईश्वर सर्वशक्तिमान है,सर्वव्यापक है हमे इस से कोई आपत्ति नही । आपत्ति तो यह है कि ईश्वर ने सर्वशक्तिमान ओर सर्व व्यापक होते हुये भी मनुष्य को क्यो बनाया? कितना अच्छा होता,,,सर्वशक्तिमान ईश्वर अकेला ही रहता,,मनुष्य का अस्तित्त्व ही नही रहता तो आज हमें सांसारिक दुखो से सामना नही करना पड़ता।
अंत मे यह कहना चाहता हूँ कि मै सच्चा आस्तिक हु जिसे किसी अदृश्य शक्ति पर विश्वास है जिसने सम्पूर्ण ब्रह्मांड को बनाया(यह भी एक प्रश्न है कि ब्रह्मांड बनाने की क्या जरूरत थी)। मेरा उद्देश्य ईश्वर का व्यंग्य करना नही है।
कृपया उतर अवश्य भेजे और आपसे विनती है कि उत्तर की एक कॉपी वाट्सअप या ईमेल पर भी अवश्य प्रेषित करें क्योकि ब्लॉग पर फिर ढूंढना मुश्किल है।
वाट्सअप 971552645630
ईमेल yuvrajjangid96@gmail.com
आपके उतर की प्रतीक्षा में।
युवराज जांगिड़।
जय श्री राम।