04 अक्तूबर 2011

धर्म और अध्यात्म

आज महीनों बाद इस ब्लॉग पर कुछ लिख रहा हूँ. इस न लिखने के पीछे भी कई कारण हैं. पहला जो कारण है वह यह कि अध्यात्म जैसे विषय पर लिखने के लिए मन में बहुत निरोल भाव चाहिए होते हैं, जीवन में सात्विकता, आचरण में पवित्रता और कर्म दृढ़ता की बहुत आवश्यकता होती. अगर यह सब नहीं है तो आप लिख तो सकते हैं लेकिन उस लिखने का कोई अर्थ नहीं रह जाता जब तक कि वह सब बातें आपके जीवन में नहीं होती. अध्यात्म का सम्बन्ध जीवन के आन्तरिक पक्ष से है और धर्म का सम्बन्ध जीवन के बाह्य पक्ष से. धर्म हमारे आचरण का आधार है तो अध्यात्म हमारे जीवन का प्रकाश है. धर्म का पालन कर हम जीवन को बहुत सुन्दरता से जी सकते हैं, तो अध्यात्म का पालन कर हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते है और जीवन के वास्तविक लक्ष्य को हासिल करते हुए आवागमन के (बन्धन) चक्कर से मुक्त हो सकते हैं. धर्म अगर ‘धारयति इति धर्मः’ है तो अध्यात्म आत्मा का परमात्मा में मिलन है. जब आत्मा सतगुरु की कृपा से परमात्मा को प्राप्त लेती है तो वह आवगमन के चक्करों से मुक्त हो जाती है उसे बार-बार जन्म नहीं लेना पड़ता तो यह अध्यात्म की चरम अवस्था है. सबसे पहली बात तो यह कि हम धर्म और अध्यात्म के वास्तविक अर्थों को समझ पायें. धर्म के आधार पर हम हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि आदि हो सकते हैं. लेकिन अध्यात्म के आधार पर नहीं. यह बात अलग है कि धर्म के मूल में अध्यात्म नहीं हो सकता है लेकिन अध्यात्म के मूल में धर्म अवश्य रहा है.

हम संसार के किसी भी प्राणी को देख लें. सबमें जब हम ईश्वर का रूप देखते हैं तो हम अध्यात्म की और अग्रसर होते हैं और अगर हम भिन्नता देखते हैं तो धर्म की और. धर्म के आधार पर हम हिन्दू है, मुस्लिम हैं, ईसाई है, जैन हैं. लेकिन आध्यात्म के आधार पर नहीं. धर्म ने हमारी भाषा को अलग  किया, खान-पान  को अलग किया, रीति रिवाजों को अलग किया, पहरावे को अलग किया और भी कई ऐसी भिन्नताएं  हैं जो धर्म के कारण यहाँ फैली हैं, लेकिन यह बात भी सच है कि धर्म का मूल मंतव्य यह नहीं था. धर्म का मूल मंतव्य तो यह था कि इंसान-इंसान के करीब आये वह दुसरे के हित के लिए हमेशा कार्य करे अपनी इच्छाओं का त्याग करते हुए जीवन को मानवता के  लिए समर्पित करे. कोई भी धर्म ऐसा नहीं जिसे इंसान को इंसान बनने की सीख न दी हो.
लेकिन वर्तमान में जब देखता हूँ तो पाता हूँ कि धर्म के नाम पर हम कट्टर हो गए हैं. हम धर्म के वास्तविक मायनों को भूल गए हैं और आज जितने झगडे धर्म के कारण हो रहे हैं उतने शायद किसी और के कारण नहीं..... किसी शायर ने क्या खूब लिखा है :
                                            राम वालों को इस्लाम से बू आती है
                                            अहले इस्लाम को राम से बू आती है
                                            क्या कहें दुनिया के हालत है इस कदर
                                            यहाँ इंसान को इंसान से बू आती है
आखिर क्या कारण है कि इंसान को इंसान से ही बू आने लगी और फिर धरती का यह स्वरूप बना. इतिहास गवाह है कि धर्म पर झगड़ों के कारण ही ना जाने कितने इंसानों की जान चली गयी है और आज भी हालात हमारे सामने हैं. ना जाने कितनी विसंगतियां आज हमारे सामने हैं और उनके विपरीत परिणाम भी आज हमें देखने को मिल रहे हैं आये दिन कहीं गोली चल रही है तो, कहीं बम फट रहा है, कहीं किसी को बंधक बनाया जा रहा है तो कहीं कुछ और किया जा रहा है. कुल मिलाकर स्थितियां बहुत दर्दनाक है और इंसान आज इंसान से ही महफूज नहीं है उसे सबसे ज्यादा डर अगर किसी से है तो इंसान से ही है. राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक परिस्थितयों के आधार पर हममें  भिन्नताएं हो सकती हैं लेकिन ‘आध्यात्मिक’ स्थिति के आधार पर नहीं. लेकिन हम उसे समझने की कभी कोशिश नहीं करते. आइये आध्यात्म के आधार पर देखते हैं कि किस तरह इन भिन्नताओं से निजात पायी जा सकती है और क्या सच में यह भिन्नताएं हैं या नहीं. गीता में भगवान श्रीकृष्ण इस विषय में अर्जुन  को समझाते हुए कहते हैं कि समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः’ अर्थात में सभी प्राणियों में समभाव से व्यापक हूँ. न किसी से द्वेष है, न ही कोई अधिक प्रिय. अब यह स्पष्ट हो गया कि जिसके पास ज्ञान रूपी प्रकाश है उसे सभी अपने ही दिखेंगे कोई भेद नहीं. पदमपुराण के उन्नीसवें अध्याय के 355-356 वें शलोक में आता है : श्रुयतां धर्म सर्वस्यं, श्रुत्वा चैवावधार्यातम / आत्म प्रतिकुलानि परेषां न समाचेतत. अर्थात हे मनुष्य तुम लोग धर्म का सार सुनो और सुनकर धारण करो कि-जो हम अपने लिए नहीं चाहते, वह दूसरों के प्रति न करें. क्योँकि जो मैं हूँ वही तुम हो. जब हम इस बात को समझ जाते हैं तो सही मायनों में हम इंसान  कहलाते हैं . अध्यात्म  के आधार पर हमें इस सृष्टि को समझने की आवश्यकता  है. अगर हम सृष्टि के निर्माण को समझ लेते हैं तो फिर मुझे नहीं लगता कि हमें किसी और चीज को समझने की आवश्यकता है.

विश्व का प्रत्येक मानव पांच तत्वों से मिलकर बना है अगर सभी इन्हीं तत्वों से बने हैं तो फिर भेद क्योँ हैं . जिसे तुलसीदास जी ने ‘छिति जल पावक गगन समीरा’ कहकर पुकारा है : 
                                           आकाश    के बीच "शब्द " तत्व है 
                                           वायु =        शब्द + स्पर्श 
                                           अग्नि =        शब्द + स्पर्श  +  रूप 
                                           जल =        शब्द + स्पर्श + रूप + रस                     
                                           पृथ्वी =       शब्द + स्पर्श + रूप + रस + गंध
खलील जिब्रान लिखते है कि ‘आपका प्रकृति के साथ गहरा सम्बन्ध है. प्रकृति का प्रत्येक तत्व आप में मौजूद है. स्थान की दूरी आपको प्रकृति  से अलग नहीं कर सकती. जैसे एक मिटटी के कण में धरती के, पानी की एक बूंद में समुद्र के गुण मौजूद हैं ऐसे ही ब्रह्माण्ड के जीवन-तत्व के गुण आप में हैं.

इन सब बातों पर विचार करने के बाद यही निष्कर्ष निकलता है कि ‘धर्म और अध्यात्म’ एक ही सिक्के के दो पहलु हैं, दोनों का लक्ष्य एक ही  है. हम जीवन को सही मायनों में तभी जी पाते हैं जब मानवीय भावनाओं से युक्त होते हैं और इन मानवीय भावनाओं को जीवन में धारण करने के लिए हमें स्वस्थ दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है और वह स्वस्थ दृष्टिकोण पूर्वाग्रह रहित होकर आध्यात्मिक जीवन को अपनाते हुए ग्रहण किया जा सकता है. 

24 आपकी टिप्पणियाँ:

Rakesh Kumar ने कहा…

आखिर आपने इस ब्लॉग 'धर्म और अध्यात्म' पर भी लिख ही दिया.बहुत अच्छा लगा, केवल भाई.

गूढ़ विषय को समझने के लिए एकाग्रता तो चाहिये ही,जो पवित्र और स्थिर मन से ही संभव है.

आपने एक और धर्म को 'धारयति इति धर्म' कहा तो धर्म अध्यात्म की ओर ले जानेवाली प्रथम सीढ़ी हुई न.इस परिभाषा से धर्म का अर्थ 'हिंदू','मुस्लिम','ईसाई'आदि कदापि नहीं लगाया जा सकता है.जिनको मत मतान्तर के आधार पर पूजा/उपासना आदि की विभिन्न पद्दतियां मात्र ही माना जा सकता है.

सुन्दर सार्थक लेखन के लिए बधाई.

केवल राम ने कहा…

आपका कहना सही है आदरणीय राकेश जी मैंने इस लेख को सम्यक दृष्टि से इसे देखने का प्रयास किया है ...इसलिए "धर्म" शब्द का प्रयोग ( हिन्दू , मुस्लिम , ईसाई ) आदि के लिए किया ....किसी पोस्ट में इन सबको स्पष्ट करने का प्रयास करूँगा ...अगर कहीं खेदजनक कुछ लगा हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ ...आपकी टिप्पणी सदा ही प्रेरणादायी रहती है आशा है आप अपना मार्गदर्शन निरंतर प्रदान करते रहेंगे ....!

Smart Indian ने कहा…

हर सद्विचार का उद्देश्य मानवमात्र को जोड़ना है जबकि तोडने वाले किसी भी विचार को अपने निहित स्वार्थ के लिये इस्तेमाल करते हैं।

बेनामी ने कहा…

केवल जी - मैं भी राकेश भैया जैसी ही स्थिति में हूँ - कुछ ठीक ठेक समझ नहीं आया | अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा |
smart indian ji is absolutely right - as usual :)

vandana gupta ने कहा…

धर्म और अध्यात्म का बहुत सुन्दर विश्लेषण किया है।

Arunesh c dave ने कहा…

बहुत गहरी बात लिखी है आपने धर्म धारण करने की चीज है इसी मे सार निहित है जब लोग दूसरो से धर्म का आचरण करवाना चाहते है तभी समाज पीड़ित होता है

सुज्ञ ने कहा…

'धर्म'; आत्मा का मूल स्वभाव है, उसे ही धारण किया जाना है। धर्मध्यान के चिंतन को ही 'अध्यात्म' कहते है। उसी में गहन और वि्शिष्ठ दृष्टि से विश्लेषण को 'दर्शन' कहते है।

केवल राम ने कहा…

@@आदरणीय सुज्ञ जी आपने धर्म , अध्यात्म और दर्शन को सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है ....मैंने लेख को थोडा सा सम्यक दृष्टि से देखा है ......वर्ना में भी आपकी सभी बातों से ताल्लुख रखता हूँ ...शुक्रिया आपका

Human ने कहा…

बहुत ही अच्छा और सही लेख लिखा है आपने राकेश जी, बधाई!
आज इंसान ने प्रगति तो बहुत कर ली, लेकिन आज भी धर्म और मजहबों में उलझा हुआ है
भगवान् का नाम हम जो भी कहें अल्लाह,ईश्वर, राम,जीसस निरंकार उससे अधिक महत्व हमारी भावना का है,इंसान के अंतःकरण की शुद्धि का है
सही कहा है किसी ने और मैं सब बातों का निचोड़ उसी में मानता हूँ की
हम भगवान् को तो मानते हैं लेकिन भगवान् की नहीं मानते

Human ने कहा…

माफ़ कीजियेगा केवल जी मैं राकेश लिख गया

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

सुन्दर, विश्लेष्णात्मक एवं जीवनोपयोगी अध्यात्मिक प्रस्तुति...
गोस्वामी जी ने सच्चाई को बहुत सरल ढंग से प्रस्तुत किया ...'.परहित सरिस धरम नहि भाई | परपीड़ा सम नहि अधमाई '

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

खलील जिब्रान ने सही कहा कि हमारे में प्रकृति के सभी तत्व हैं... तभी तो अंत में यह माटी माटी में ही मिल जाती है। तभी तो शायर ने कहा है-
ज़िंदगी क्या है? अनासिर का यकजा होना
मौत क्या है? इन्हीं का बिखर जाना॥

ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU' ने कहा…

खूब ठीक!

बरेली आना हो तो संजयनगर के करीब सैनिक कालोनी गली न . चार मेँ श्री अर्द्धनारीश्वर शक्तिपीठ के संस्थापक राजेन्द्र प्रताप सिंह उर्फ भैय्या जी से अवश्य मिलेँ.

संजय भास्‍कर ने कहा…

केवल जी
बेहतरीन लेख़ सही कहा है आपने
...अध्यात्म का बहुत सुन्दर विश्लेषण किया है।

बेनामी ने कहा…

keval ram ji - waiting for the next part eagerly :)

Asha Lata Saxena ने कहा…

गूढ़ विषय है |अच्छी अभिव्यक्ति |
नई जानकारी देती रचना |
आशा

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर आलेख लिखा है आपने!

बेनामी ने कहा…

Most powerful&cost effective SEO and website traffic service in world get up to 100’000 forum backlinks now!
Get amazing online web traffic using best backlink blast today. We can post your custom post up to 100’000 forums around the web, get insane amount of backlinks and great targeted web traffic in very short time. Most affordable and most powerful service for web traffic and backlinks in the world!!!!
Your post will be published up to 100000 forums worldwide your website or blog will get instant traffic and massive increase in seo rankings just after few days or weeks so your site will get targeted long term traffic from search engines. Order now:
backlink service

शिवनागले दमुआ ने कहा…

आपने अपनी बात बहुत खूबसुरत ढंग से रखी है । पढ़ कर आंनद आ गया । अति उत्तम लेख ! धन्यवाद ।

dinesh aggarwal ने कहा…

केवल राम जी प्रथम अभिवादन स्वीकार करें।
धर्म के संबंध में सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये बधाई।
अज्ञानतावश जिन्हें हम धर्म समझते हैं,वह सम्प्रदाय हैं। धर्म तो मात्र एक ही हैः- मानवता।
अफसोस कि इसे मानने वाले नगण्य हैं।
सब धर्मों में जिस ईश्वर की कल्पना की गई है,
वास्तव में वह तो है ही नहीं। एक मात्र ईश्वर
प्रकृति है। यदि मेरी बात अनुचित लगे तो कृपया
क्षमा करते हुये मार्ग-दर्शन करें।

SANDEEP PANWAR ने कहा…

धरम का jhamela सबसे निराला

Ramakant Singh ने कहा…

धर्म और अध्यात्म का बहुत सुन्दर विश्लेषण
sundar ati sundar gyan ke liye badhai
no need to analysis nice lines

hinditipsguru ने कहा…

nice post
Backlink Kya hai

striasmita ने कहा…

Thoughtful Article on Spirituality and religion