हम अपने देश के इतिहास पर नजर डालते हैं तो हम पाते हैं कि हमारा जीवन दर्शन हमें "तमसो मां ज्योतिर्गमय" अर्थात अन्धकार से प्रकाश कि और ले जाता है । अन्धकार क्या है , प्रकाश क्या है ? इन विषयों पर हमारे देश " आर्यावर्त" में काफी पहले से विचार किया गया । और हम कुछ निष्कर्षों तक भी पहुँच गए । सृष्टि कि उत्पति का रहस्य क्या रहा है ? जीव क्या है ? जगत क्या है ? माया क्या है ? ब्रह्म क्या है ? आत्मा क्या है ? परमात्मा क्या है ? आदि तमाम अनसुलझे प्रश्नों पर हमारे ऋषि मुनियों ने विचार किया है , उनका अध्ययन काफी हद तक नहीं वल्कि पूरी तरह से हमारा पथ प्रदर्शन करता है , और हमें इस परम तत्व कि तरफ आक्रष्ट करता है ( जिसे हम परमात्मा कि संज्ञा से अभिहित करते हैं ) ।
हम अगर अपने आस पास के वातावरण पर नजर डालते हैं तो हमे महसूस होता है कि जो हमें दिखाई दे रहा है उसके आलावा भी इस सृष्टि में कोई ऐसा तत्व है जो इसका संचालन कर रहा है । जिसे द्वारा यह पूरा ब्रह्माण्ड नियंत्रित किया जा रहा है , और इस सब कि अभिव्यक्ति उन संतों महापुरषों ने कि है जिन्होंने इस परम सता का साक्षात्कार किया , और उनके साक्षात्कार के विवरण हमें धर्म ग्रंथों में मिलते हैं । कुछ ऐसे ही धर्म ग्रंथों में से मैंने चयन किया है
एक ऐसे धर्म ग्रन्थ का जो बीसबी शताब्दी में लिखा गया । सीधी और सरल भाषा में लिखा गया यह ग्रन्थ परम तत्व की जानकारी हमें पूरी तरह से देने में सहायता करता है ।
सम्पूर्ण अवतार बाणी की रचना बाबा अवतार सिंह जी निरंकारी ने की है । बाबा अवतार सिंह जी दुनियाबी शिक्षा के तोर पर अनपढ़ थे ,थोडा बहुत पंजाबी का ज्ञान उन्हें था , "अवतार बाणी" नमक इस ग्रन्थ की सिर्फ चार पंक्तियाँ उन्होंने अपनी लेखनी से लिखी हैं , बाकि इस ग्रन्थ के 375 पद्यों को उनके परम शिष्य पूर्ण प्रकाश "साकी" जी ने लिखा है । पूर्ण प्रकाश साकी जी के शब्दों में " जब बाबा जी किसी पद्य को लिखने के लिए मुझे अपने पास बिठाते थे तो उनके चेहरे पर आलोकिक प्रकाश होता था , आवाज ऐसी कि व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो जाता था । और फिर किसी पद्य को कहने के बाद उसका निरिक्षण खुद करते थे " सम्पूर्ण अवतार बाणी दो भागों में प्रकाशित हुई । इसका पहला भाग सन 1957 में लोक कवि सभा द्वारा छापा गया और दूसरा भाग सन 1964 में संत निरंकारी मंडल द्वारा छापा गया । आज यह ग्रन्थ भारत कि लगभग सभी भाषों के आलावा अंग्रेजी , उर्दू आदि भाषाओँ में अनुदित हैं ।
इस बाणी कि उपयोगिता और आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए इसकी भूमिका में लिखा गया है " अज दी वैज्ञानिक दुनिया विच संत निरंकारी मिशन दे बानी बाबा अवतार सिंह जी निरंकारी जितने सादे शब्दां नाल रब्बी रमजां नू आम आदमी तक पहुंचा के जगत दा उद्धार कर रहे हन, एह कोई लुकी छुपी गल नहीं । हजारां आदमी एन्हां चरना चों ज्ञान दी रोशनी प्राप्त करके अपना जीवन सफल कर रहे हन । दिनों दिन निरंकारी संगत दी बध रही गिनती एस गल दा सबूत है कि अज शांति ते अमन दे चाहवान आप जी दी शिक्षा तों किन्ने प्रभावित हो रहे हन । एस लई हर दिल दी तड़प सी कि किसे तरहं पूज्य बाबा जी दे मनोहर वचन दुनियां दे कोने -कोने तक पहुंचाए जाण । सच्चे पातशाह बाबा जी दे शब्द पल -पल चेते रखन बाला सहारा हन जिस दे बगेर दिल बच शांति टिक नहीं सकती । एस लई चुपासियों एह मंग सी कि हजूर दे शब्द किताबी शक्ल विच छापे जाण तां जो हर कोई इन्हां तो लाभ उठा सके ।
जारी .........!
हम अगर अपने आस पास के वातावरण पर नजर डालते हैं तो हमे महसूस होता है कि जो हमें दिखाई दे रहा है उसके आलावा भी इस सृष्टि में कोई ऐसा तत्व है जो इसका संचालन कर रहा है । जिसे द्वारा यह पूरा ब्रह्माण्ड नियंत्रित किया जा रहा है , और इस सब कि अभिव्यक्ति उन संतों महापुरषों ने कि है जिन्होंने इस परम सता का साक्षात्कार किया , और उनके साक्षात्कार के विवरण हमें धर्म ग्रंथों में मिलते हैं । कुछ ऐसे ही धर्म ग्रंथों में से मैंने चयन किया है
एक ऐसे धर्म ग्रन्थ का जो बीसबी शताब्दी में लिखा गया । सीधी और सरल भाषा में लिखा गया यह ग्रन्थ परम तत्व की जानकारी हमें पूरी तरह से देने में सहायता करता है ।
सम्पूर्ण अवतार बाणी की रचना बाबा अवतार सिंह जी निरंकारी ने की है । बाबा अवतार सिंह जी दुनियाबी शिक्षा के तोर पर अनपढ़ थे ,थोडा बहुत पंजाबी का ज्ञान उन्हें था , "अवतार बाणी" नमक इस ग्रन्थ की सिर्फ चार पंक्तियाँ उन्होंने अपनी लेखनी से लिखी हैं , बाकि इस ग्रन्थ के 375 पद्यों को उनके परम शिष्य पूर्ण प्रकाश "साकी" जी ने लिखा है । पूर्ण प्रकाश साकी जी के शब्दों में " जब बाबा जी किसी पद्य को लिखने के लिए मुझे अपने पास बिठाते थे तो उनके चेहरे पर आलोकिक प्रकाश होता था , आवाज ऐसी कि व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो जाता था । और फिर किसी पद्य को कहने के बाद उसका निरिक्षण खुद करते थे " सम्पूर्ण अवतार बाणी दो भागों में प्रकाशित हुई । इसका पहला भाग सन 1957 में लोक कवि सभा द्वारा छापा गया और दूसरा भाग सन 1964 में संत निरंकारी मंडल द्वारा छापा गया । आज यह ग्रन्थ भारत कि लगभग सभी भाषों के आलावा अंग्रेजी , उर्दू आदि भाषाओँ में अनुदित हैं ।
इस बाणी कि उपयोगिता और आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए इसकी भूमिका में लिखा गया है " अज दी वैज्ञानिक दुनिया विच संत निरंकारी मिशन दे बानी बाबा अवतार सिंह जी निरंकारी जितने सादे शब्दां नाल रब्बी रमजां नू आम आदमी तक पहुंचा के जगत दा उद्धार कर रहे हन, एह कोई लुकी छुपी गल नहीं । हजारां आदमी एन्हां चरना चों ज्ञान दी रोशनी प्राप्त करके अपना जीवन सफल कर रहे हन । दिनों दिन निरंकारी संगत दी बध रही गिनती एस गल दा सबूत है कि अज शांति ते अमन दे चाहवान आप जी दी शिक्षा तों किन्ने प्रभावित हो रहे हन । एस लई हर दिल दी तड़प सी कि किसे तरहं पूज्य बाबा जी दे मनोहर वचन दुनियां दे कोने -कोने तक पहुंचाए जाण । सच्चे पातशाह बाबा जी दे शब्द पल -पल चेते रखन बाला सहारा हन जिस दे बगेर दिल बच शांति टिक नहीं सकती । एस लई चुपासियों एह मंग सी कि हजूर दे शब्द किताबी शक्ल विच छापे जाण तां जो हर कोई इन्हां तो लाभ उठा सके ।
जारी .........!
9 आपकी टिप्पणियाँ:
इस सृष्टि में कोई ऐसा तत्व है जो इसका संचालन कर रहा है । जिसे द्वारा यह पूरा ब्रह्माण्ड नियंत्रित किया जा रहा है , और इस सब कि अभिव्यक्ति उन संतों महापुरषों ने कि है जिन्होंने इस परम सता का साक्षात्कार किया , और उनके साक्षात्कार के विवरण हमें धर्म ग्रंथों में मिलते हैं ....
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I agree with you. I believe in the supreme power ruling this universe.
Beautiful post .
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@>>>मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद , इस सृष्टि के कण -कण में परमात्मा विद्यमान है , परन्तु इंसान मन के वशीभूत होकर इसे महसूस नहीं कर पाता , इसे महसूस करने के लिए इंसान को संसार से ऊपर उठकर, मतलब अपने मन के अहंकार को त्यागकर प्रयास करना पड़ता है ...आप इस ब्लॉग पर आते रहिये मेरा प्रयास रहेगा इंसान के सामने जो भ्रम हैं उनका निराकरण करने का .... अनुसरण करने के लिए "स्वागत" के साथ हार्दिक आभार ...!
"चलते -चलते "पर भी आपका स्वागत है
मुझे लगता है कि हमारे रिशिओं मुनिओं दुआरा अर्जित ग्यान को आज के हमारे संतों ने केवल समाज को बाँतने और अपने अपने अलग मट्ठ बनाने के लिये ही प्रयोग किया है किसी ने उस एक सत्ता को केवल एक मान कर चलने मे विश्वास नही किया अगर किया होता तो आज इतने अधिक धार्मिक मत या संस्थान नही होते। हरेक ने अपनी गद्दी को सुरक्शित कर लोगों के अग्यान का लाभ उठाया\ माफ करें मै किसी एक के लिये नही कह रही सभी धर्म गुरू आज यही कर रहे हैं। धन्यवाद।
निर्मला जी, आपने सही कहा , आज हम जितना अपने आपको वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला मानते हैं उतना ही हम भ्रमों में भी पड़े हैं , आपने सही कहा ...हमारे पास सब कुछ होते हुए भी हम भ्रमों के शिकार हैं, जिन धर्म ग्रंथो को हम पढते हैं उनका ही हम अनुसरण नहीं कर पाते...और उस पर आजकल के तथाकथित धर्मगुरु ...कुल मिलाकर हम अंधकार की और अग्रसर..यही सब कुछ देख कर दुःख होता है ....एक विनम्र सा प्रयास है ...यह मेरा ...संभवतः आप सबके आशीर्वाद का परिणाम ..शुक्रिया प्रेरणादायक टिप्पणी के लिए
आध्यात्म जीवन को सुन्दरता के जीना सिखाती है . आपका प्रयास सराहनीय है ..आपको बधाई .
--""। सृष्टि कि उत्पति का रहस्य क्या रहा है ? जीव क्या है ? जगत क्या है ? माया क्या है ? ब्रह्म क्या है ? आत्मा क्या है ? परमात्मा क्या है ? आदि तमाम अनसुलझे प्रश्नों पर हमारे ऋषि मुनियों ने विचार किया है , उनका अध्ययन काफी हद तक नहीं वल्कि पूरी तरह से हमारा पथ प्रदर्शन करता है , और हमें इस परम तत्व कि तरफ आक्रष्ट करता है ( जिसे हम परमात्मा कि संज्ञा से अभिहित करते हैं ) ।""
----केवल राम जी, उपरोक्त वस्तुतः एक शाश्वत सत्य है जिसे आज कल हम भूलते जारहे हैं, भौतिकता के भ्रम जाल में---श्रिष्टि महाकाव्य का एक अन्श इसी भाव पर---
"सोच हुई है सीमित उसकी,
सोच पारहा सिर्फ़ स्वयं तक;
त्याग, प्रेम उपकार-भावना,
परदुख,परहित,उच्चभाव सब ;
हुए तिरोहित,सीमित है वह,
रोटी कपडा औ मकान तक।।
कारण-कार्य,ब्रह्म औ माया(२)
सद-नासद(3) पर साया किसका?
दर्शन और संसार प्रकृति के ,
भाव नहीं अब उठते मन में;
अन्धकार- अज्ञान- में डूबा,
भूल गया मानव ईश्वर को।।"
आपने बहुत खुबसूरत शब्दों मै धरम का परिचय दिया है दोस्त पर जिस अंदाज़ से लोग धरम का दुरुपयोग कर रहे हैं वो देख कर सुन कर बहुत दुःख होता है ! इतने बड़े मंदिर हैं मै नाम नहीं लेना चाहूंगी पर वहां पहुँचते ही सारी श्रद्धा ख़तम सी हो जाती है और पंडितो के लालच को देख कर लगता है की यहाँ भगवान के नाम पर सिर्फ लुट हो रही हो , सिर्फ व्यापार ...बहुत तकलीफ होती है तब की हमारे देश का धरम क्या इस कदर बिकाऊ हो गया है ! पर हमे तो सिर्फ अच्छी राह चलना है और आपकी कोशिश सफल हो और ये किसी मुकाम तक पहुंचे हम आपके साथ हैं !
बहुत - बहुत बधाई दोस्त !
@>>> Amrita Tanmay ji
@>>> Dr. shyam gupta ji
@>>> Minakshi Pant ji
आपका ह्रदय से आभारी हूँ ...मेरा प्रयास रहेगा की जो भ्रांतियां हमारे सामने ईश्वर, माया , जगत , आदि के बारे में हैं उनका निराकरण करूँ ....की वास्तविकता क्या है ....ईश्वर मुझ पर अपनी कृपा बनाये रखे तो में कुछ कर पाने में सक्षम हो पाऊं ...आपका मार्गदर्शन मेरे लिए महत्वपूर्ण है ...मीनाक्षी पन्त जी आपका कैसे धन्यवाद करूँ ..बस यूँ ही उत्साहित करते रहना
जय श्रीकृष्ण!
बहुत ही शानदार और ज्ञानवर्धक ब्लॉग।
संग्रह के लिए तथा पाठक तक पहुँचाने के लिए सहृदय धन्यवाद
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